मंथरा
एक शारीरिक विकृति से ग्रसित ( एक कूबड़ पीठ ) मंथरा का बाल्यकाल सामाजिक अस्वीकृति एवं भेदभाव का प्रापक बना | शारीरिक विकृति के कारण उसे आजीवन अविवाहित भी रहना पड़ा | कैकेइ की चचेरी बहन होने के बावजूद अयोध्या में उसे दासियों के समान सुलूक भी सहना पड़ा |
प्रेम के अभाव में बचपन और यौवनावस्था गुजर जाने के कारण, एवं समाज से स्वीकृति, समानता और उदारता के अभाव में पलने-बढ़ने के कारण वह एक आत्मविश्वास, साहस, उदारता एवं प्रेम से परिपूर्ण महिला के रूप में विकसित न होकर एक विचलित, ईर्ष्यालु, अविश्वासी, स्वार्थी, एवं चिड़चिड़े चरित्र के साथ विकसित हुई | बचपन से ही उसे समाज से इतने दुर्व्यवहार की प्राप्ति हुई थी कि किसी भी व्यक्ति में विशुद्ध परोपकार के अस्तित्व में उसका विश्वास कर पाना अत्यंत कठिन बन चुका था |
वह स्वयं की प्रेम-पात्रता (lovability) पर इतना संदेह करने लगी कि यदि कभी कोई उसे प्रेम से दो मीठे बोल बोल भी दे, या किसी भी रूप में कोई उसके प्रति उदार हो भी जाए, तब भी उसे इस उदारता में सिर्फ छिपे स्वार्थी प्रयोजन या कपट ही नज़र आते थे |
स्वप्रेम (self -love) की कमी एवं आत्मसंशय (self-doubt) होने के कारण वह दूसरों से अपेक्षाएँ अपशब्दों से ज्यादा कुछ नहीं रखती, एवं इस प्रकार उन्हें स्वयं को निराश कर पाने के अधिकार से वंचित रखती थी | स्वयं के कोमल व्यक्तित्व को दूसरों द्वारा दिए जाने वाले दुख से अभेद्य करने का उसका यही तरीका था - वह दूसरों से खुदके प्रति अपेक्षाएँ दुष्टतम रखती | दूसरों पर अविश्वास के कारण उसका जीवन के प्रति आचरण आपसी सहकारिता एवं सहयोग से प्रेरित न होकर आपसी स्पर्धा एवं संघर्ष से प्रेरित होने लगा |
एक अत्यंत आत्मकेंद्रित व्यक्तित्व के साथ विकसित होने के बावजूद भी मंथरा में प्रेम दे पाने की क्षमता थी | उसके आत्म की परिधि (circle of self) खुद तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें वे भी थे जिन्हें वह स्वयं का ही एक विस्तार मानती थी | इस परिधि के भीतर के लोगों के हित को वह खुद के हित के ही समान मानती थी एवं बेशर्त प्रेम प्रदान करती थी | वह कैकेइ के लिए सर्वश्रेष्ठ जीवन की ही कामना करती थी, एवं कैकेइ के राज-प्रभाव में गिरावट आने के विचार को सहन न कर सकी | मंथरा को इस बात की अनुभूति बखूबी थी कि एक रानी को प्रभाव (power) में नीचे गिरने पर जीवन में किन दुखों का सामना करना पड़ सकता है , किस प्रकार प्रतिष्ठा एवं गरिमा का धीरे धीरे खनन हो सकता है | कैकेइ के प्रति इन चिंताओं को लेकर मंथरा अत्यंत भाव-विभोर हो गई, एवं बिना नीति और मर्यादा का मान किये, कैकेइ के राज-प्रभाव को बढ़ाने के लिए अतिउत्तेजित प्रयासों में लग गई |
रामायण की कथा चाहे जैसे भी आगे बढ़ती, मंथरा के कर्मों का दीर्घकालीन परिणाम लाभदायक नहीं हो सकता था |
इन टिप्पणियों को गौर से पढ़ें :
1. "समूह के लिए सर्वश्रेष्ठ परिणाम तब आता है जब समूह का हर व्यक्ति स्वयं के लिए सर्वश्रेष्ठ करता है "| - एडम स्मिथ (1723-1790), अर्थशास्त्री
2. "किसी समूह के लिए सर्वश्रेष्ठ तब होता है जब समूह में हर कोई स्वयं एवं समूह के लिए सर्वश्रेष्ठ करता है " - जॉन नाश (1928 -2015 ), अमेरिकी गणितज्ञ, नोबेल पुरस्कार विजेता (आर्थिक विज्ञान, 1994) (जीवनी फिल्म : अ ब्यूटीफुल माइंड - 2001)
जॉन नाश की उपरोक्त टिप्पणी अर्थशास्त्र के पितामह एडम स्मिथ की टिप्पणी से ज़्यादा उचित है क्यूंकि ऐसी विचारधारा से प्रेरित जीवन से हम स्वयं के साथ साथ समाज को तो विकसित करते ही हैं साथ ही दीर्घ काल में आर्थिक असमानता और सामाजिक अपवर्जन जैसी बुराइयों को भी कम करते हैं |
हम सभी के भीतर एक मंथरा विद्यमान है, एवं वह स्पर्धा और संकट जैसी परिस्थितियों में सतह पर आकर हम पर हावी भी होने लगती है | जब हम किसी परिस्थिति में मिलकर काम करने के बजाय एक दूसरे पर पल्ला झाड़ते हैं, हमारी आत्म-केंद्रिता और खुदगरज़ी स्पष्ट होने लगती है | जब हम गलतियाँ होने पर उत्तरदायित्व स्वीकार करने के बजाय किसी अन्य को दोषी ठहराते हैं, कहीं न कहीं यह वही भीतर की मंथरा का कार्य होता है जो हमारे भंगुर व्यक्तित्व को बाहरी घात से बचाने की कोशिश कर रही होती है | मंथरा बुरी नहीं है, वह हमारी ही जैविक प्रवत्ति (survival instinct) का वह हिस्सा है जो हमें आपदा में खुदको सुरक्षित करने की ऊर्जा प्रदान करता है | इस कारण से मंथरा की भूमिका हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है | लेकिन जिन परिस्थितियों में कुछ ठोस या वास्तविक आपदा है ही नहीं या उसके होने की संभावना काफी कम है, उन परिस्थितियों में हमारी आंतरिक मंथरा का सक्रिय होना फ़िज़ूल है - जैसे कि भरोसेमंद मित्रों के बीच, या परिवार के बीच | इस विषय में हमें एक संतुलन की आवश्यकता है, जिससे हम अपनी मंथरा को अनावश्यक ही सक्रिय न करके उसका सकारात्मक प्रयोग स्वयं के साथ दूसरों के भी खतरों का आँकलन करने व सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कर सकें; एवं एक शांतिप्रिय, चिंतारहित जीवन, जितना हो सके, संभव कर सकें |
सिर्फ खुद के लिए जीने में स्वयं की सुरक्षा तो आश्वस्त हो जाती है, लेकिन ऐसे जीवन से हम समाज को उस स्तर के सामूहिक उत्पादन एवं उन्नति से वंचित कर देते हैं जो योगदान अन्यथा हम आपसी सहकारिता व सहयोग के साथ कर सकते थे | जब हम तालमेल में सिनर्जी (synergy) के साथ काम करते हैं, तब सामूहिक उत्पादन (collective productivity) 1 + 1 = 11 तक भी बढ़ जाता है | साथ तालमेल में काम करने से हमारा जीवन उतना प्रभावपूर्ण (effective) एवं उत्पादक (productive) हो सकता है, जितना की एक आत्म-केंद्रित जीवन में न हो सके | इसके लिए जरूरी है कि हम सभी अपनी आंतरिक मंथरा को संयमित करके उसे सकारात्मक प्रयोग में ला सकें | हम अपने आत्म की परिधि (circle of self ) के बाहर के लोगों के लिए कुछ उदारतापूर्ण करके समाज में सभी के लिए अपनेपन की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं | जब कोई किसी का निस्वार्थ प्रेम देखता है तो अंदर की मंथरा खुद ब खुद दोषनिव्रत्ति के ओर बढ़ती है | यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बच्चों को स्नेहपूर्ण परवरिश मिले, ताकि वे मानवता में एक स्वस्थ स्तर के विश्वास के साथ एवं प्रेम से परिपूर्ण एक स्वस्थ व्यक्तित्व के साथ विकसित हों |
लोगों को 'अच्छा मानव' और 'बुरा मानव' नामक अनन्य भागों में बांटने के बजाय हम हर मनुष्य को एक समावेशी 'पर्याप्ततः अच्छा मानव' (good enough) की परिभाषा में सम्मिलित कर सभी को भेदभाव या पराएपन की भावना से राहत दे सकते हैं, एवं उन्हें सही मायने में स्वतंत्रता की अनुभूति के निकट ला सकते हैं | 'पर्याप्ततः अच्छा' की धारणा हमारे आपसी संबंधों को भी बेहतर बना सकती है :- जब माता-पिता अपने बच्चों को या बच्चे अपने माता पिता को, मित्र अथवा जीवनसाथी एक दूसरे को पर्याप्ततः अच्छा मानेंगे तो वे एक दूसरे पर अपेक्षाओं का अनावश्यक बोझ नहीं डालेंगे, जब वे एक दूसरे की कमियाँ निकालने की जगह उन्हें पर्याप्ततः अच्छा मानकर उन्हें सिर्फ उनकी खूबियाँ और अप्रत्यक्ष प्रतिभा का स्मरण करवाएंगे, तो वे एक दूसरे का बंधन न बनकर उनकी स्वतंत्रता एवं उन्नति में सहयोगी बन पाएंगे |
इस प्रकार हम अपने स्वयं के भीतर की मंथरा को पहचानकर एवं स्वीकार कर, दूसरों में उसे ढूंढना बंद कर पाएंगे, एवं संसार को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दशा में छोड़कर अपना उत्तरदायित्व निभा पाएंगे |
वसुधैव कुटुंबकम् : सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है |