WAXING
मैं सेकेंड year में थी । नए बैच की फ्रेशर पार्टी आ रही थी । कपड़े तो बहुत थे मेरे पास, लेकिन लग रहा था कि इस पार्टी के लिए कुछ नया चाहिए । 6 लोगों से discuss करने के बाद भी क्या पहनूं ये decide नहीं कर पा रही थी । अब वन पीस पहनूंगी तो पैर और हाथ के एक्सपोज्ड एरिया के hair दिखेंगे। waxing करवानी पड़ेगी, उफ़।
खैर, नई ड्रेस लेने लिए मार्केट जाने के लिए मैं कॉलेज के गेट पे खड़े ऑटो में बैठ गई । कॉलेज थोड़ा सिटी के बाहर था, यहां उबर तो आती नहीं, ऑटो का पब्लिक ट्रांसपोर्ट ही सफर का तरीका था । ऑटो थोड़ा कॉलेज से आगे चला ही था, कि सड़क पर चलते एक करीब 13-14 साल के लड़के ने ऑटो को आवाज लगाई । ऑटो वाले ने तुरंत तो रोका नहीं, लेकिन कुछ सोचकर थोडा आगे जाकर उसने break लगा दिए । शायद ये सोचा होगा कि यहां सड़क सुनसान है, कुछ ऑटो या बस आसानी से मिलेगी नहीं, बैठा लेते हैं । ऑटो रुकते ही मैंने पीछे घूम कर देखा, करीब 50 मीटर दूर से ये लड़का अपने साथ एक करीब 10 साल के बच्चे के साथ हंसता हुए भागा चला आ रहा था । दोनों शक्ल से भाई लग रहे थे । बड़े भाई के कपड़े फटे से और ऑयल और ग्रीस के हो रखे थे । दोनों ऑटो की तरफ ऐसी खुशी के साथ भागे चले आ रहे थे जैसे ये गाड़ी जन्नत ही लेकर जाएगी । छोटे वाले के एक हाथ में किताब थी और दूसरे हाथ से अपनी खिसकती पैंट को ऊपर खींचते हुए खिलखिलाते हुए दौड़ा चला आ रहा था । भागते हांफते दोनों ऑटो में चढ़ गए । बड़े भाई की चप्पल एक जगह से चूहों ने काफी कुतर रखी थी, और ये किसी साड़ी के कपड़े से कामचलाउ बना रखी थी । छोटे वाले के कपड़े और चप्पल ठीक थे।
उनकी बातें सुनकर और उन्हें देखकर मैंने अंदाज़ा लगाया कि बड़े भाई के ऊपर ही छोटे की जिम्मेदारी है और वह ये जिम्मेदारी गर्व के साथ अपनी आवश्यकताओं का त्याग करके भी निभाता है ।
एक साइकिल पंक्चर की दुकान पर ऑटो रुका और दोनों भाई उतर गए। बड़ा वाला पंक्चर सुधारता था और छोटा वहीं दुकान पर बैठकर पढ़ता था ।
गरीबों को देखकर अक्सर मुझे अच्छा लगता है, क्यूंकि इनके सामने मुझे अमीरों वाली फीलिंग आती है।
जब देखती हूं दूसरों के पास क्या नहीं है, तब एहसाह होता है कि मेरे पास कितना कुछ तो है !! भाग्यशाली तो हूं मैं।
लेकिन पता नहीं क्यूं आज गरीब टाइप feel ho रहा था । एक मैं हूं जिसे जीवन में खुशी के लिए ये देखना पड़ता है कि मैं कैसी लग रही हूं, लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं, वगैरह। मुझे चार लोगों में आत्मविश्वास के साथ खड़े होने के लिए अपनी खाल के बाल उखाड़ने पड़ते हैं।
दूसरी ओर ये बड़ा भाई था जिसे अपनी self-worth या self-esteem के validation के लिए ना बाल बनाने की जरूरत, ना जूते पहनने की, ना सल्लू भाई वाले ब्रेसलेट की। बस वह अपने भाई की जरूरतें पूरी कर सके और उसकी खुशी में निस्वार्थ रूप से अपनी खुशी देख पाए, इसी से उसकी सारी psychological needs पूरी हो जाती है । प्यार बांटता रहे, इसी में वह खुश था । गरीब तो मैं थी ।
क्यूं इस कॉलेज के मॉडर्न कल्चर में वैक्सिंग से खाल छीलने का दबाव हर लड़की को महसूस होता था ?। ये मॉडर्निटी है क्या?
सोचते सोचते वो मॉल आ गया जहां की दुकान से मुझे नई ड्रेस खरीदनी थी । ऑटो रुक गया । जेब में मैं नई ड्रेस के लिए 4000 लेकर आई थी । लेकिन मैं उतरी नहीं । मैंने ऑटो वाले को पिचोला झील चलने को कहा । झील किनारे एक ओपन एयर रेस्टोरेंट पर बैठ मैंने अकेले मस्त पिज़्ज़ा खाया और फिर ऑटो से वापस कॉलेज आ गई ।